बुधवार, 11 जनवरी 2012

जून-जुलाई तक भारत पर हमला करेगा चीन..



नई दिल्ली| चीन इस साल जून या जुलाई में भारत पर हमला कर सकता है। भारतीय 
सेना के पूर्व अधिकारियों को इस बात की आशंका है कि हिमालय के दर्रों में बर्फ पिघलने 
के बाद ड्रैगन अपना असली रंग दिखा सकता है। पूर्व सैन्य अधिकारी कर्नल (रिटायर्ड) 
अनिल अथाले के मुताबिक चीन संपूर्ण युद्ध की बजाय अचानक ही छोटा और तीखा 
हमला करेगा। 
 रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन भारत पर दो तरफ से हमला कर सकता है। एक तरफ
तो चीन अरुणाचल प्रदेश से सटे तिब्बत की तरफ से हल्ला बोल सकता है, वहीं दूसरी 
ओर लेह लद्दाख के पास गिलगिट से भी 'ड्रैगन' भारत के खिलाफ जंग छेड़ सकता है। 
इन हमलों में पाकिस्तान चीन का साथ दे सकता है। 
 सबसे गंभीर बात यह है कि एक तरफ चीन के खतरनाक इरादे लगातार सामने आ रहे 
हैं, वहीं भारतीय सेना का मनोबल विवादों के चलते गिरने की आशंका भी बढ़ती जा रही 
है। कर्नल अथाले सेना प्रमुख विजय कुमार सिंह की जन्मतिथि को लेकर चल रहे विवाद
 को भी बेहद गैरजिम्मेदाराना और सेना का मनोबल गिराने वाला मानते हैं। उन्होंने कहा
 कि 1962 के युद्ध से पहले भी सेना के जनरल और तत्कालीन रक्षा मंत्री के बीच विवाद
 के बाद तब के जनरल ने इस्तीफा दे दिया था। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल
 नेहरू के कहने पर उन्होंने इस्तीफा वापस लिया था। उन दिनों संसद में भी सेना के जनरल
 की आलोचना की गई थी। अनिल अथाले के मुताबिक इन घटनाओं का सेना के मनोबल
 पर बहुत बुरा असर हुआ था और 1962 में चीन के हाथों भारत की हार हुई थी।
 रक्षा विशेषज्ञ चीन द्वारा हाल के कुछ महीनों में भारत के खिलाफ उठाए गए कदमों को बेहद
 गंभीर मानते हैं। हिमालय से लगी भारत की सीमा में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के 
सैनिकों के घुसने, वियतनाम के पास समुद्र में भारतीय जहाज से विवाद, हिंद महासागर में 
चीन की बढ़ती पैठ,  श्रीलंका और बांग्लादेश में बंदरगाह बनाने में मदद, पाकिस्तान में चीनी
 सैनिकों और इंजीनियरों की तैनाती को गंभीरता से देखा जा रहा है। यह अलग बात है कि भारत
 सरकार इन घटनाओं को गंभीर नहीं मानती है। 
 बीते 14 दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान चीन की बढ़ती हरकतों पर बयान देते 
हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि उनकी सरकार यह नहीं मानती है कि चीन भारत 
पर हमला करेगा। लेकिन रक्षा विशेषज्ञ मनमोहन सिंह के आत्मविश्वास की तुलना 1962 में 
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के उस भरोसे से करते हैं, जिसमें उन्होंने 
चीन के हमले से पहले चीन को लेकर ऐसी ही राय रखी थी। 
 भारत अब भी मानता है कि बातचीत के जरिए ही चीन को सीमा विवाद सुलझाने के लिए मना
 लेगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन अगले हफ्ते चीन के प्रतिनिधि के साथ सीमा 
विवाद सुलझाने के लिए 15 वें दौर की बातचीत करेंगे। हालांकि, यह बातचीत ऐसे माहौल में होगी,
 जहां अरुणाचल प्रदेश के एक वायुसेना अधिकारी के चीन जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल
 होने पर चीन ने आपत्ति जताई और भारत ने इसे मान लिया। गौरतलब है कि चीन अरुणाचल 
प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है। भारत ने चीन की आपत्ति के आगे झुकते हुए अपने सैन्य
 प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों की संख्या 30 से घटाकर 15 कर दी। 
चीन लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है और भारत इस खतरे से मुंह नहीं मोड़ सकता है। पूर्व 
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन ऐसा ही मानते हैं।
 नारायणन मानते हैं कि चीन परंपरागत तौर पर पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया पर जोर देता रहा
 है। लेकिन हाल के कुछ सालों में चीन ने अपनी दिलचस्पी का दायरा बढ़ाते हुए दक्षिण और 
ध्य एशिया तक अपने प्रभाव के दायरे को बढ़ाने पर काम कर रहा है। चीन नेपाल, भूटान,
 बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, उत्तर कोरिया, श्रीलंका, ईरान, पाकिस्तान,
 सऊदी अरब के साथ न सिर्फ रिश्ते मजबूत कर रहा है बल्कि सैन्य और आर्थिक सहयोग भी
 बढ़ा रहा है। जानकार इसे भारत के लिए खतरा मानते हैं।    
भारत-चीन के सैन्य रिश्तों का अध्ययन करने वाले अनिल अथाले इन संकेतों को गंभीरता से 
लेते हैं। एडमिरल (रिटायर्ड) अरुण प्रकाश भी ड्रैगन के रुख को लेकर आशंकित हैं। अगले साल 
चीन और भारत के बीच जंग की 50 वीं सालगिरह है। ऐसे में वह आक्रामक होते चीन की तरफ
 से इतिहास को दोहराए जाने की आशंका जाहिर करते हैं।

(साभार- राष्ट्रभूमि)

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