टीम अन्ना के वरिष्ठ
सदस्य के साथ मारपीट फिर कोर्ट के बाहर समर्थकों से झगडा को परस्पर विरोधी
राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे से प्रायोजित बताने का दौर चल रहा है ,परन्तु यहाँ
ये देखना जरुरी हो गया है कि वो कौन सी परिस्थिति आ गयी जबकि मारने वाला और मार
खाने वाला दोनों ही अन्ना की जय जयकार कर रहे है !
अन्ना अब सिर्फ एक
नाम नहीं वरन एक आंदोलन ,एक पहचान, भ्रष्टाचार के खिलाफ
एक सशक्त आवाज बन चुके है ! अन्ना सिर्फ एक व्यक्ति न होकर हिन्दुस्तान की आम जनता
की आवाज के रूप में व्याप्त है , वो उनके लिए उम्मीद
की वो किरण है जो उनकी भावनाओं को सामने ला रही है, ये आम जनता के उस
बहुत बडे वर्ग की आशाओ का केंद्र है जो दशको से भ्रष्ट तंत्र के बीच में रहते रहते
स्वयं भी प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से उसका अंग हो गयी है !
अब अन्ना हजारे 74
वर्षीय वृद्ध न होकर उस 17 साल के किशोर में भी दिखते है जो भ्रष्ट
शिक्षा तंत्र की वज़ह से कॉलेज में प्रवेश से वंचित है , वो 25 वर्ष के नवयुवक भी है जिसको योग्य होने के बावजूद यथोचित
नौकरी नहीं है , और तो और वो वह ईमानदार अफसर भी है जिसको
चाटुकारिता न आने की वज़ह से कभी सही काम करने का अवसर नहीं दिया जाता, कार्यपरक पोस्टिंग नहीं मिलती ! अन्ना अब किसी राजनैतिक दल में
वर्षों से दरी -पल्ली उठा रहे कार्यकर्त्ता भी है जिसके सामने आये नए छुटभैये
सिर्फ अपने संपर्को के सहारे सांसद ,विधायक ,पार्षद बनने का टिकट पा जाते है और इनको बस अगली बार का आश्वासन
मिलता है ! हर तरह के सामाजिक, आर्थिक भ्रष्टाचार
से झूझते सभी व्यक्तियों में अब किसी न किसी रूप - स्वरुप में अब अन्ना विद्धमान
है !
अन्ना
के आंदोलन ने देश की सोयी हुयी आत्मा को जगाने का काम किया , देश की जनता को अरसे
बाद ये लगा कि उनकी बात को भी सुना जा सकता है और अपने को सर्वोच्च कहने वाली संसद
और उसके नुमाइंदे इस हद तक उनके आगे झुक भी सकते है ! हालाँकि बहुत से लोग इस मत
के भी है जिनका मानना है कि इस आंदोलन को मीडिया ने बहुत बढ़ा चढा कर देश के सामने
प्रस्तुत किया और सारी अन्य खबरों को दरकिनार कर सारा समय इस आंदोलन पर केंद्रित रखा
जिस वज़ह से जबरदस्त प्रचार मिला और ये सन्देश गया कि पूरा देश अन्नामय है ! आंदोलन
चलाने को कोर कमेटी बनी जिसका नामकरण खेल की टीम की तर्ज़ पर टीम अन्ना किया गया !
देश की जनता ने इसके सदस्यों के पुराने क्रियाकलापों पर ध्यान न देते हुए सिर्फ और
सिर्फ अन्ना को अपना आदर्श समझा और उनके मुख से निकले प्रत्येक शब्द को आदेश मान
कार्य किया !
परन्तु
इस आन्दोलन में निकले नारे “मै हूँ अन्ना” ने इस आंदोलन का स्वरुप ही बदल दिया ! अब हर वो व्यक्ति भी अपने को अन्ना
समझने लगा जो इस व्यवस्था में अपनी भूमिका अपनी नज़र से देख रहा था ! ये वो
व्यवस्था थी जिसमे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने कि
आज़ादी भी थी , देश के संवेदनशील मुद्दों पर निजी राय को मौलिक अधिकार के नाम पर जग
जाहिर करने, दूसरों की राष्ट्रवादी भावनाओ को चोट पहुचने का अधिकार भी प्राप्त था !
जबकि अन्ना को अपना आदर्श मान चुके और “मै हूँ अन्ना “ को पूरी शिद्दत से अपना चुके नौजवान घटनाओ को अपनी दृष्टि से देखने का प्रयास
करने लगे ! वो अब अन्ना के नाम पर उनकी टीम के दिए किसी भी राष्ट्रविरोधी वक्तव्य
को अपनाने को तैयार नही थे, वो अन्ना के साथ तो थे लेकिन टीम अन्ना के सारे
क्रियाकलापों का हिसाब रखने लगे थे और इधर टीम अन्ना के सदस्य भी शायद ये भूल गए
कि दशको से भ्रष्ट व्यवस्था में पिस रही जनता का आक्रोश सिर्फ अन्ना जैसे
निर्विवाद व्यक्ति के नेतृत्व के कारण फूट
पड़ा , जो भी समर्थन था वो सिर्फ और सिर्फ अन्ना के नाम पर था, इनके कुछ सदस्यों को
तो जनता ने अन्ना की वज़ह से बर्दाश्त किया !
इसी
ग़लतफ़हमी में टीम के वरिष्ठ सदस्य और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता देश के सर्वाधिक
संवेदनशील कश्मीर मुद्दे पर अपनी निजी राय को सार्वजनिक कर बैठे ! जिस कश्मीर की
इंच इंच भूमि की रक्षा में हमारे सैनिक अपने प्राणों को दांव पर लगा रहे है, जिस
में आज़ादी के बाद से कई बार चुनाव हो चुके है , जो अब एक मुद्दे से ज्यादा हमारी
राष्ट्रीय अस्मिता का सवाल बन चुका है उस कश्मीर पर अलगाववादियों की भाषा में
बोलना लगभग सभी को चुभा !लेकिन ये चुभन सबसे ज्यादा महसूस की उन नौजवानों ने जो अब
अन्ना हो चुके थे और सभी विषयों पर अपना विरोध प्रदर्शित करने की शिक्षा पहले जंतर
मंतर फिर रामलीला मैदान पर ग्रहण कर चुके थे ! वो ये भी जान चुके थे कि लोकतंत्र
में लोक पहले है तंत्र बाद मे.. और अंततः उन्होंने विरोध किया भी बस भूल गए तो अहिंसा
का मार्ग जो अन्ना की सबसे बड़ी शक्ति थी !
अब
स्वयं अन्ना को इस आंदोलन के पुनर्निरीक्षण की आवश्यकता है ! वो अब ये कह कर नहीं
बच सकते कि उन्होंने कश्मीर सम्बंधित बयान नहीं देखा या फिर ये उनकी टीम के निजी
विचार है , अगर कुछ टीम सदस्यों के गुण भी उनके खाते में है तो कुछ के दोष भी उनको
ही ग्रहण करने होंगे !
praveen ji bilkul shi likh h aapne.sochane vaali bat ye h ki hum sab apni galtyo ko kyu nhi.maante.thik mai manata h anna ki galti is vishay me zyada nhi h par unka ye khna ki humene dekha nhi,humne suna mhi,ye sarasar galat h,baap chaaye jitna mahan ho agar beta galti karega to bhugtna baap ko bhi padta h.koi baap ye nhi khta ki ye galti isne jab ki thi tb mai ghar par nhi tha.ya mujhe pta nhi.....kul milakar hum hindustani chaaye jitne bhi mahan ho jaaye .par apni galti nhi maanege.galti nikaalege dosro ki...fir chaahe vo anna hi kyo na ho...............jai hind....
जवाब देंहटाएंI agree with you on almost 90% of the facts that you have put in your blog but I strongly object to one point in particular. I salute Indian army and their efforts but Mr. Prashant Bhushan did not say anything that could have ushered such unacceptable behavior from these nettlesome elements.
जवाब देंहटाएंHe had only suggested that a referendum should be conducted in Kashmir. He's no authority that any word said by him could have got translated into any legislation and any compromise on the values that the great Bhagat Singh had left could have got dismantled.
Each one of us enjoys freedom of speech in India. So, you just can't go & thrash a respectable citizen of this country just because you hold a diverging opinion. This kind of reprehensible behavior cannot be accepted under any circumstance(s).
Anna is an icon today, and as far as I can analyze he would never agree with these anti-social elements and their sinful behavior no matter how much these elements flaunt Anna cap with insignia "Mai bhi Anna, Tu bhi Anna."
anna ke upar badi jimmedari hai ab ..
जवाब देंहटाएंrajeev sharma
gorakhpur
अन्ना का भ्रष्टाचार के खिलाफ किया गया आंदोलन अब अन्ना सहित उनकी कोर टीम से पूरी तरह हाथ से निकल गया है. इस आंदोलन की आत्मा देश में सभी में व्याप्त हो गयी है. कारण साफ है की जब भी जालिम और जुल्मी सरकार से कोई टकराता है तो वो मील का पत्थर बन जाता है. और वो पत्थर बाद में आने वालों के लिए पथ-प्रदर्शक की तरह से काम करता है.
जवाब देंहटाएंइस देश की एक विडम्बना है की यहाँ लोकतंत्र है अतः राजनीति तो कभी बंद हो ही नहीं सकती . यहाँ की राजनीति मे राजनीति के लिए दूसरे की माँ को अपनी माँ बनाना आम बात है .सो ये बता पाना तो लगभग असंभव है की अन्ना कांग्रेस के एजेंट है या भाजपा के . हा देश की जनता को कुछ समय के लिए लगने लगा था की वो देश के एजेंट है .
जवाब देंहटाएंअब यही से शुरू होती है गफलत वास्तविकता के है की इस आन्दोलन के पहले देश की 90 प्रतिशत जनता इन मे से किसी का नाम भी नहीं जानती थी बल्कि बाबा रामदेव के साथ ऐसा नहीं था उनको तो लगभग 70 प्रतिशत जनता जानती थी . उसके बावजूद लोग अन्ना के पीछे आ कर खड़े हुए उसकी केवल और केवल एक वजह थी की लोग समर्थन, भ्रष्टाचार के विरोध का कर रहे थे ना की अन्ना का या उनकी टीम का .लोगो को एक साफ़ सुथरी छवि वाला वियक्ति दिखा , भले वो छवि केवल एक सप्ताह के टीवी द्वारा तथा अखबारों द्वारा बनायीं गयी थी और जो बेदाग लगा, लोग उस को आगे करते हुए अपने मन मे उत्पन्न हुए भ्रष्टाचार के विरोध को प्रदर्शित करना चाह रहे थे . उसी स्थान पर एक पुनीत मुद्दा बाबा रामदेव ने भी उठाया परन्तु उनकी छवि विवादित हो गयी लोगो की आस्था उनमे पूरी तरह से नहीं जुड पाई.
इस पुरे प्रकरण मे सब कुछ अच्छा चल रहा था बुराई तब आ गयी जब टीम अन्ना ने जनता के समर्थन को अपना समर्थन मान लिया.कहा जाता है की समय से पहले और क्षमता से जादा मिला सम्मान हर कोई संभाल पाता है .और यही हुआ टीम अन्ना के साथ लोग उनके साथ एक मुद्दे पर थे वो भी अन्ना की अगुवाई मे . परन्तु टीम के सभी गण स्वक्षन्द हो कर मुक्त कंठ से हर बात पर प्रवचन देने लगे और वो भी देश की मीडिया के सामने . जो की माशाअल्लाह इत्तनी अच्छी है की तिल का ताड़ कभी भी बना सकती है .
जनता को मुर्ख समझने की भूल ही टीम अन्ना को सब से जादा भारी पड़ी . जिसका नतीजा ये रहा की आज के एक महीने पहले जिस जनता ने उनको सर पर बिठा रखा था उसी जनता को उलजलूल बात पर उनका सर तोड़ने से भी गुरेज नहीं है .
यह बात अब सभी को अच्छी तरह से जान लेनी चाहिए की जनता गांधारी नहीं है जो केवल आप के पीछे पीछे चले . जब तक सच तब तक साथ .
ये बात अन्ना को भी समझनी पड़ेगी और अपने आप को पाक दामन रखने के साथ साथ ये भी देखना होगा की उनके साथ जुड़े लोगो का भी दामन पाक रहे .........
apni smjh to yeh kehti hai ki anna ko apne desh ki bholi bhali janta ne isliye itna sir par baithal diya ki--1. is bholi bhali janta ke man me kahi n kahi is baat ki khalish thi ki koi aage aye aur is bhrastachar ke khilaaf awaj uthaye par koi nahi dikhta tha aur dusri taraf, 2.media ne kuch aise uska darshaya ki is bholi janta ko ati saaf suthra aadmi lagne laga aur woh use dusra gandhi samjhne lagi.
जवाब देंहटाएंyeh janta bar-2 dhoke khati hai phir bhi vishwas karne se piche nahi hat ti. Yeh bhul jaati hai ki gandhi ke uper vishwas kiya, congress pe kiya aur phir bjp par bhi kiya sabhi ne dhoka diya aur apni jeb bhari
yeh bhul jaate hai jise bapu kaha usne kitna bada vishwasghat kara, phir bhi usko maaf kar dete hai aur pujte hai aaj tak, ek gandhi ki khamiya aaj tak dho rahe hai dusra kyun banane me lage hai, is janta ko khud hi aage aana hoga aur in netao ko chaurahao par nanga nachana hoga
Aanna aur Aanna ke aandolan ko kuch log , kuch samay se bhram ke chashme se dekh rahe the, unka manana tha ki ab ye aandolan aage nahi chalega, kuch to yahan tak bolgaye ki Aanna congress ke haathon khel rahe hain. Is desh ke logo ko yeh baat samajh kyon nahi aati ki bahut samay baad jo ek mauka mila hai , usko vyarth apni soch ke makadjaal mein fansa kar na gavvayen. Mauka mila hai to aage aa kar usko mukkaam tak pahunchaane mein madad karen. Sabhi deshbhakton se nivedan karna cahunga ki MUDDE ke saath poori aastha se lag jaayen ,jeeva mein baar baar aise mauke nahi milte. Jeevan bhar apne liye kiya ab kuch desh aur aage aane wale peedhi ke liye bhi karo
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