


नई दिल्ली।
योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि
खानपान पर शहरों में 965 रुपये और
गांवों में 781 रुपये
प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है। गरीबी रेखा की नई
परिभाषा तय करते हुए योजना आयोग ने कहा कि शहर में हर रोज 32 रुपये और गांव में 26 रुपये खर्च करने वाला शख्स
बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा पाने का हकदार नहीं है।
अपनी यह
रिपोर्ट योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर दी है। इस रिपोर्ट पर
खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए हैं। आयोग ने गरीबी रेखा संबंधी नया
क्राइटीरिया सुझाते हुए कहा है कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु
और चेन्नै में चार सदस्यों वाला परिवार यदि महीने में 3860 रुपये खर्च करता है, तो वही गरीब नहीं कहा जा
सकता। इस हास्यास्पद परिभाषा पर हो- हल्ला मचना शुरू हो चुका है।
रिपोर्ट
के मुताबिक, एक दिन
में एक आदमी प्रति दिन अगर 5.50 रुपये
दाल पर, 1.02 रुपये
चावल-रोटी पर, 2.33 रुपये
दूध, 1.55 रुपये
तेल, 1.95 रुपये
साग-सब्जी, 44 पैसे फल
पर, 70 पैसे
चीनी पर, 78 पैसे
नमक व मसालों पर, 1.51 पैसे
अन्य खाद्य पदार्थों पर, 3.75 पैसे
ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्यक्ति
अगर 49.10 रुपये
मासिक किराया दे तो आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जाएगा। योजना आयोग की मानें तो
हेल्थ सर्विसेज पर 39.70 रुपये
प्रति महीने खर्च करके आप स्वस्थ रह सकते हैं। एजुकेशन पर 99 पैसे प्रतिदिन खर्च करते
हैं तो आपको शिक्षा के संबंध में कतई गरीब नहीं माना जा सकता। यदि आप 61.30 रुपये
महीनेवार, 9.6 रुपये
चप्पल और 28.80 रुपये
बाकी पर्सनल सामान पर खर्च कर सकते हैं तो आप आयोग की नजर में बिल्कुल भी गरीब
नहीं कहे जा सकते।
आयोग ने
यह डाटा बनाते समय 2010-11 के
इंडस्ट्रियल वर्कर्स के कंस्यूमर प्राइस इंडेक्स और तेंडुलकर कमिटी की 2004-05 की
कीमतों के आधार पर खर्च का हिसाब-किताब दिखाने वाली रिपोर्ट पर गौर किया है।
हालांकि, रिपोर्ट
में अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद
पेश की जाएगी।
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