मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

प्यार................ आखिर ये प्यार है क्या ??


प्यार................  आखिर  ये  प्यार  है  क्या ?
क्या  किसी  खास  तारीख   को  हाथ  में  गुलाब  लेकर  किसी  के  पीछे  भटकना  प्यार  है , वो  न  माने  तो  दूसरे  फिर  तीसरे ...., या  फिर  हाथो  में  हाथ  डाल  कर  रेस्टोरेंट  में  बैठना  प्यार  है ?

अगर  आपने  सच  में  प्यार  किया  है  तो  आप  जानते  हो  कि  ये  प्यार  वो  प्यार  नहीं  जिसका  अहसास  आपकी  रूह  को  छूकर  आपको  रोमांच  से  भर  देता  है , प्रेयसी  की  कल्पना  करते  ही  सिहरन  सी  रगो  में  दौड़  जाती  हो , उसकी  आँखों  की  याद  आये  तो  अपनी  आँखे  भर   आती  हो ... 

....................याद  है  वो  दिन  जब  वो  पहली  बार  मिले .. देखते  ही  जैसे  लगा  की  बस  यही  तो  है ... लेकिन   चाह  कर  भी  कुछ  न  कह  पाए .. कुछ  डर  भी .. कुछ  संकोच  भी .. मिले  तो  पर  फासले  के  साथ .. लेकिन  मन  के  मंदिर  में  तो  स्थापना  हो  ही  गयी .. दिन   महीने  साल  बीत  गए .. कई  मौसम  गुजरे...... हलकी  फुलकी  बरसात  भी  हुई... लेकिन  जिस  तूफ़ान  का  इन्तजार  था  वो  अब  तक  न  आया  था ..

फिर  वो  मिले  .. अब  तो  माशाअल्ला  कुदरत  भी  उनपर  पूरी  तरह  से  मेहरबान  थी ..  कई  बाते  हुई .. मुलाकाते  हुई .. लेकिन  मै  अभी  भी  वही  था ...वही  डर .. वही  संकोच .. फिर  बात  अधूरी  ही  रही  और  वो   चले  गए .. 

...अबकी  बार  वो  आने  को  थे .. इधर  मन  को   पक्का  किया  कि  बस  सारी  जिन्दगी  घुटने  से  अच्छा  है  कि  अबकी  बार  अपने  मन  को  मौका  दे  ही  दो  कि  मन  की  कर  सके ... अब  तो  बांकेबिहारी  की  मदद  भी  जरुरी  थी .. जो  उन्होंने  की  भी .. आपस  में  एक  अनकहा  सा  रिश्ता  कायम  हुआ .. मन  ने  पूरी  कोशिश  की  लेकिन  फिर  नाकाम  रहा , आवाज़  गले  से  आगे  निकल  ही  नहीं  पाई .. और  वो  चले  गए 

.....लेकिन  अब  तक  जो  भी  रिश्ता  बन  चुका  था  वो  आगे  का  काम  आसान  करने  वाला  था .. मन  ने  मन  को  फिर  समझाया  की  बस  एक  बार  अपनी  बात  कह  लो  , जो  होगा  देखा  जायेगा ........... पुरातन समय में जो काम कबूतर किया करते थे वो अब जगह मोबाइल ने ले ली.. सहारा लिया..         बात हुयी.. ...     पहले तो ना हुई..     दिल धड़क उठा,     लगा सालो बाद यही होना था क्या ?        लेकिन मन को मनाया कि तूने तो अपना काम किया अब क्या शिकायत ? सदमे को बाहर  नहीं आने दिया ! लेकिन ये क्या फिर दो दिनों के बाद  उनका नंबर मेरे मोबाइल पर मेरे चेहरे कि तरह चमका,, बोले मन्नत असर कर गयी लगता है.. मुझे अब और क्या चाहिए था इस दुनिया में.... बरसो पुराना ख्वाब पूरा होने वाला था...
                     पर  उफ़.......... ये हुस्न वालो क़ी अदा कहे या कुंडली में चन्द्रमा ख़राब,, फिर से बेरुखी हाँ.. हाँ... ना.... ना.. मेरी भी आदत सी हो गयी थी.. मुझे तो हाँ में तो हाँ लगता ही था ना में भी हाँ सुनता था !                                                              .......................................................... क्रमश :

(साभार: - अधूरी कहानियां )

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