हे वनराज..............
हे वनराज,
अब आप भी अपनी मर्यादा त्याग ही दो.......
जिस तरह से हम मनुष्य आपके घरो को उजाड़ रहे है
आपके अस्तित्व को संकट में डाल रहे हैं,
वो
क्या आपको उद्देलित नहीं करता ?
और अगर करता है तो अब तक क्यों बर्दाश्त कर रहे हो
आखिर
सहन करने की भी एक सीमा होती है,
उठो.. जागो..
और इस मृतप्रायः मानव समाज पर टूट पड़ो,
मृतप्रायः क्यों ??????
वो इसलिए कि अगर जीवंत होता तो क्या देश में चल रहे
भ्रष्ट नेताओ, अधिकारियो, पत्रकारों,
तथाकथित समाजसेवको के घालमेल
को देखकर भी नज़रअंदाज कर सकता था क्या ??
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें