आज रात्रि में कानपुर के घंटाघर में विचरते हुए अचानक मेरी आँखें इस होर्डिंग पर आकर ठहर
गयी, मुझे पहले तो लगा कि क्या जो मेरे मन में कानपुर की छवि है क्या ये उसके अनुरूप है ? ये
शहर तो हमेशा क्रांति का अग्रदूत रहा है इस शहर ने हमेशा से देश को एक नयी दिशा दी है चाहे वो
१८५७ की स्वाधीनता की जंग रही हो या उसके बाद का आजादी का संघर्ष, हमेशा कानपुर से उठी
आवाज़ का एक अपना इतिहास रहा है ! और ये मुमकिन इसलिए हो पाया क्यों कि यहाँ हमेशा उन
लोगो ने आगे बढकर नेतृतव संभाला जो कि वैचारिक स्तर पर अत्यंत मजबूत थे, उनके एक एक
शब्दों का महत्व था !
गयी, मुझे पहले तो लगा कि क्या जो मेरे मन में कानपुर की छवि है क्या ये उसके अनुरूप है ? ये
शहर तो हमेशा क्रांति का अग्रदूत रहा है इस शहर ने हमेशा से देश को एक नयी दिशा दी है चाहे वो
१८५७ की स्वाधीनता की जंग रही हो या उसके बाद का आजादी का संघर्ष, हमेशा कानपुर से उठी
आवाज़ का एक अपना इतिहास रहा है ! और ये मुमकिन इसलिए हो पाया क्यों कि यहाँ हमेशा उन
लोगो ने आगे बढकर नेतृतव संभाला जो कि वैचारिक स्तर पर अत्यंत मजबूत थे, उनके एक एक
शब्दों का महत्व था !
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