शनिवार, 5 मार्च 2011

कानपुर के कसाब - १

आज रात्रि में कानपुर के घंटाघर में विचरते हुए अचानक मेरी आँखें इस होर्डिंग पर आकर ठहर 


गयी, मुझे पहले तो लगा कि क्या जो मेरे मन में कानपुर की छवि है क्या ये उसके अनुरूप है ? ये 


शहर तो हमेशा क्रांति का अग्रदूत रहा है इस शहर ने हमेशा से देश को एक नयी दिशा दी है चाहे वो 


१८५७ की स्वाधीनता की जंग रही हो या उसके बाद का आजादी का संघर्ष, हमेशा कानपुर से उठी 


आवाज़ का एक अपना इतिहास रहा है ! और ये मुमकिन इसलिए हो पाया क्यों कि यहाँ हमेशा उन 


लोगो ने आगे बढकर नेतृतव संभाला जो कि वैचारिक स्तर पर अत्यंत मजबूत थे, उनके एक एक 


शब्दों का महत्व था !



अब इस होर्डिंग को ध्यान से देखिये........

कुछ समझ आ रहा है ?
अब जब देश पुनः करवटे बदलने कि तैय्यारी में है और इसकी अगुवाई स्वयं हमारी न्यायपालिका कर रही है, माननीय उच्चतम न्यायालय के हाल के निर्णयों से इस बड़े बदलाव की आहट मिलने लगी है !
उन्ही जन हितकारी निर्णयों में से एक निर्णय ये
 भी है कि गुटखा को प्लास्टिक पाउच में बेचने पर १ मार्च से प्रतिबन्ध लगा है ! माननीय उच्चतम न्यायालय ने वैकल्पिक व्यवस्था के लिए निर्माताओ को पर्याप्त समय भी दिया था , जिसके बावजूद वो व्यवस्था करने कि जगह उत्पादन बढाने में लगे रहे !
ज्यादा न घूम कर मेरा सीधा और साधारण सा प्रश्न ये है कि आज सुबह ११ बजे का ये कार्यक्रम जो कि सरकार के खिलाफ बताया जा रहा है क्या वो माननीय उच्चतम न्यायालय की अवहेलना है कि नहीं ? जबकि ये प्रतिबन्ध माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा ही आदेशित है फिर शब्दों के जाल में उलझा कर ये विरोध आखिर प्रत्यछ या परोछ रूप से किसका है ????
?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें