सोमवार, 19 दिसंबर 2011

कानपुर में ऐतिहासिक पहल "गंगा के लिए साथ.. राज और समाज"

 सतयुग में राजा सगर के ६० हज़ार पुत्रों का उद्धार करने के बाद गंगा इस कलियुग में अपने उद्धार की बाट जोह रही है ! ऐसा नहीं कि गंगा को माँ मानने वाले भक्तो ने इसके लिए प्रयास नहीं किया लेकिन कभी सरकारी उदासीनता आड़े आयी तो कभी समाज की सहभागिता कमजोर पड़ी ! आवश्यकता इस बात थी कि इस अभियान में राज़ और समाज एक होकर , साथ मिलकर योजना बनाये और उसको क्रियान्वित करे ! यह आवश्यक इसलिए भी था कि गंगा की अविरलता सुनिश्चित करना राज यानी शासन का काम है और उसकी निर्मलता बनाये रखना समाज यानी जनता का उत्तरदायित्व है ! राज और समाज में साझा समझ का अभाव और इस कारण उत्पन्न होता परस्पर विरोध गंगा मुक्ति अभियान की विफलता का एक प्रमुख वज़ह रहा था !




सरसैया घाट पर पहली बैठक 
भाव विभोर हो भजन गाते ए.डी.एम्. आपूर्ति अखिलेश मिश्र साथ में प्रदीप श्रीवास्तव 'रौनक कानपुरी'

राज और समाज के एक साथ आकर कार्य करने के पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कहे जाने वाले देव दीपावली कार्यक्रम ने गंगा मुक्ति अभियान को एक नयी दिशा नयी सोच प्रदान की ! इस ऐतिहासिक शुरुवात के अगुवा और कानपुर नगर निगम के आयुक्त आर. विक्रम सिंह बताते है कि बनारस में तैनाती के दौरान देव दीपावली कार्यक्रम में जनता का जुडाव देख उन्होंने इसको कानपुर में शुरू करने की सोची इस कार्यक्रम में जन सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए वो सरसैया घाट पर गंगा पुरोहितो, नाविकों और समाज के सक्रिय और स्वस्थ सोच वाले लोगो के साथ बैठे,  तय किया कि गंगा से जुड़ाव रखने वाले ये सभी लोग एक साथ आकर काम करे और नगर निगम उनको पूर्ण सहयोग करे ! इस योजना को कानपुर के सभी घाटो पर विस्तारित किया गया और आध्यात्मिक गुरु पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के कर कमलों से कानपुर में एक पर्व एवं परंपरा का आरम्भ हुआ !








     





(इंडिया एलाइव पत्रिका में जनवरी अंक में प्रकाशित मेरा लेख )
पवित्र उद्धेश्य और साफ़ नियत से कोई कार्य किया जाता है तो स्थितियां भी अनुकूल होती जाती है, देवता सहायक होते है और कुछ ऐसा अनायास घटित होता है जिससे किया कार्य सार्थक हो जाता है! ऐसा ही कुछ हुआ भी, १९ दिसंबर को जिस वक्त कार्यशाला में आंदोलन में जन सहभागिता पर उद्दगार रखे जा रहे थे उसी वक्त देश की लोकसभा भी इसी चिंताओ को साझा कर रही थी ! नियम १९३ के तहत गंगा पर विस्तृत चर्चा हुयी ,जिसमे सभी सांसदों ने गंगा को एक नदी मात्र न मान संस्कृति का अभिन्न अंग बताया, माँ के रूप में माना, अब लग रहा है कि राज और समाज के एक साथ होकर इस आंदोलन में साथ चलने का समय आ गया !


3 टिप्‍पणियां:

  1. ma..ganga ko bachane ka prayas har star par sarahniya hai.. bina yeh soche ki ganga ko bachane ka uttardaitwa kiska hai, is disha me jo bhi ek kadam bhi chalta hai, wo mera sadhuwad swikar kare..

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  2. आपके यशस्वी प्रयास के लिए आपको बधाई, प्रवीण जी....

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