शनिवार, 21 अप्रैल 2012

उद्योग नगरी में पनपता अपराध उद्योग

( इंडिया एलाइव के अप्रैल अंक में प्रकाशित )

कभी एशिया का मेनचेस्टर कहे जाना वाला कानपुर अब अपने अपराध उद्योग के लिए सुर्खिया बटोर रहा है ! चैन स्नैचिंग , चोरी , वाहन चोरी जैसे अपराधों से वैसे ही कानपुर वासियों की नाक में दम था अब आये दिन होने वाली हत्या, डकैती, फिरौती और सुपारी किलिंग जैसी घटनाओ से त्राहि त्राहि मची हुयी है ! असंगठित अपराधों से जूझ रही कानपुर पुलिस अब इन अपराधों के संगठित होते स्वरुप और कानपुर में अपराध के उद्योग रूप में सामने आने से अपने को फिलहाल लाचार सा महसूस करती दिख रही है ! हैरान परेशान पुलिस अधिकारी अभी भी संसाधनों की कमी और मुखबिर तंत्र की विफलता का पुराना रोना रो रहे है !

ऐसा नहीं है कि कानपुर ने इससे पहले कभी अपराध की लपटों को महसूस नहीं किया ! आपसी रंजिशो से शुरू हो मोहल्ला स्तर के गिरोहों ने पहले भी प्रांतीय स्तर पर नाम फैलाया हुआ था ! अस्सी के दशक के शुरुवात में बहुचर्चित नई सड़क की वर्चस्व की लड़ाई हो या राम मोहन हाता – सवाई सिंह हाता के बीच का झगडा या शहर के सीसामऊ - पी.रोड इलाको में आये दिन होने वाली लड़ाइयाँ, इन सभी में खूब आतंक का माहौल रहा , हत्याएं भी हुयी ! स्थितियां यहाँ तक आ गयी कि नयी सड़क को खूनी सड़क के नाम से जाना जाने लगा !  नाक की इन लड़ाइयों में कुछ आपस में लड़कर खतम हो गए कुछ को पुलिस ने मार गिराया, इक्का दुक्का बचे जिन्होंने अपने बचाव के लिए राजनैतिक शरण में आकर खादी पहन लिया लेकिन आमतौर पर शहर में इनको आर्थिक हितों से ज्यादा अपने रसूख और रुतबे की जंग माना गया 

विशुद्ध आर्थिक कारणों से अपराध की शुरुवात हुयी अस्सी के दशक के अंत में जब कानपुर के व्यापारिक गढ़ नयागंज , कलक्टरगंज और बिरहाना रोड जैसे इलाको में वसूली के लिए जयनारायण तिवारी उर्फ जिन्दनाथ का आतंक सामने आया ! छः फिट के दुबले पतले जिन्दनाथ का नाम व्यापार जगत में दहशत का पर्याय हो गया !  अपने वसूली उद्योग को धार देने के लिए जिन्द्नाथ ने हत्याएं करने में कोई गुरेज नहीं किया ! आतंक इस चरम तक जा पहुंचा कि वसूली के लिए लिखी गयी पर्ची बेयरर चेक का काम करने लगी ! जिन्द्नाथ को तो तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डी.एन.सामल ने उसके विरोधी संजय एडी गिरोह को साथ लेकर समाप्त कर दिया लेकिन पूरे संगठित तंत्र के साथ अपराध के इस तरीके ने आने वाले समय में अपराधियों के लिए मापदंड तैयार कर दिए थे !

इन्ही मापदंडो को अपनाते हुए बाद में उभरे गिरोहों ने अपने जरायम पेशा को संगठित रूप देना प्रारंभ किया ! स्मैक का धंधा इसमें सबसे प्रमुख आर्थिक स्त्रोत बन सामने आया ! मुस्लिम इलाको गम्मू खां का हाता छोटे मियां का हाता हो या अनवरगंज खटिकाना, इस धंधे के केंद्र बन कर सामने आये ! नयी सदी के प्रारंभ तक यहाँ विशुद्ध व्यापारिक ढंग से इसने अपनी जड़े जमा ली ! अपने धंधे को जमाने और बचाने के लिए आये दिन परस्पर विरोधी गिरोहों में मारपीट और हत्याएँ भी होने लगी ! पुलिस पर भी इनसे मिलीभगत के आरोप लगते रहे !

सदी के पहले दशक में धंधे में वर्चस्व के लिए लड़ते रहे इन्ही अपराधियों के बीच में से कार्यक्षेत्र  के विस्तार के रूप में सुपारी किलिंग का बड़ा उद्योग पनपना शुरू हुआ ! बढती बेरोजगारी और अपराधी मुखियाओं के आर्थिक रसूख में होते इजाफे से आकर्षित हो नौजवानों ने सुपारी लेकर हत्याएं करनी शुरू कर दी ! पांच – दस हज़ार की रकम के लिए हत्याएं आम होती गयी ! हालात यहाँ तक बिगडे और हौंसले इस कदर बढे कि कानपुर से बाहर जाकर भी यहाँ के शूटरो ने हत्याकांडो को अंजाम दिया ! हाल में खुले भोपाल के हाई प्रोफाइल शेहला मसूद हत्याकांड में कानपुर के शूटरो के हाथ साबित होने से यह बात राष्ट्रीय स्तर पर उछली जबकि पुलिस सूत्रों के अनुसार मुंबई, सूरत और अन्य शहरों में पहले भी यही के अपराधी हत्या जैसे दुर्दांत कारनामो को सुपारी लेकर अंजाम देते रहे है ! वारदात को अंजाम देने के बाद ये अपराधी वापस शहर अपने आकाओ की शरण में पहुँच जाते है ! अपराध जगत के आंतरिक सूत्रों की माने तो अब पूरा अपराध तंत्र व्यवस्थित हो चुका है , गिरोहों की आपसी दुश्मनी भले ही बरकरार है लेकिन गिरोह के भीतर प्रत्येक सदस्य के काम का बंटवारा है , अब जुएं के अड्डे , सट्टा व्यवसाय भी पूरे संगठित तरीके से चल रहे है !

शहर की नब्ज को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद तिवारी पिछले समय में पुलिस की एफ.आई.आर. दर्ज करने में की जाती रही हीला-हवाली को इनके फलने फूलने की बड़ी वज़ह बताते हुए कहते है कि अपराध की संगठित दुनिया में पहला कदम रखने वाला छोटे अपराध चैन स्नेचिंग , राहजनी आदि से शुरू करता है जिसमे मुकदमा दर्ज करने में पुलिसिया रवैया अधिकतर टाला मटोली का रहता है जिससे शुरुवात में ही ये अपराधी चिन्हित नहीं हो पाते और उनका हौसला बढ़ता हुआ उनको बड़े अपराधों की ओर ले जाता है ! आर्यनगर बाजार में पुराने दुकानदार सुरेश सिंह चौहान के अनुसार अभी भी गनीमत यही है कि इन संगठित अपराधी गिरोहों का कार्यक्षेत्र उनका ही क्षेत्र विशेष है जिससे शहर के तमाम बड़े बाजारों में अपराधिक वसूली जैसे अपराध नगण्य ही है ! इससे सहमति जताते कानपुर व्यापार मंडल के उपाध्यक्ष अरुण तिवारी शहर में बढ़ रहे अपराधों के लिए पुलिस पर ढीलापन और संरक्षण देने का आरोप लगाते है ! उनका कहना है कि जिस थाना क्षेत्र में जुएं खाने , सट्टा बाज़ी हो रही हो , वहाँ पुलिस को अगर जानकारी नहीं है तो इसका क्या अर्थ लगाया जाना चाहिए ! हाल में थाना चकेरी में हुयी एक मोटर साइकिल चोरी का उदाहरण देते हुए आवेशित हो अरुण कहते है कि उस बाइक चोरी के वीडियो फुटेज चोरी के आधे घंटे के भीतर पुलिस को दे दिए गए जिसमे चोरों का चेहरा साफ़ दिख रहा था और ये जानकारी भी मिली कि वो क्षेत्रीय पेशेवर वाहन चोर है उसके बावजूद जब पुलिस लाचारी जताए तो बड़ी घटनाओं में इनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती है !

पुलिस की कार्यप्रणाली पर लग रहे सवालिया निशानों पर पुलिस का पक्ष जानने को इंडिया एलाइव के विशेष संवाददाता प्रवीण शुक्ल ने बात की अपर पुलिस अधीक्षक और  २००९ बैच के तेज तर्रार आई.पी.एस. अजय साहनी से ! श्री साहनी हाल के सभी पुलिस आपरेशन में शामिल रहे और अच्छे परिणाम देने के लिए चर्चित रहे है !


प्र – कानपुर में अपराध को किस तरह देखते है ?
उ – प्रदेश की आर्थिक राजधानी होने के कारण कानपुर हमेशा अपराधियों के लिए         आकर्षण का केन्द्र रहा ! बाकी जगहों की तरह यहाँ भी सभी तरह के अपराध होते है ! इतना जरूर है संगठित अपराध करने वाले गिरोह अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशो में रहते है जिसको पुलिस की सक्रियता की वज़ह से नाकाम होना पड़ता है !
प्र – पुलिस पर ही तो इनसे मिलीभगत  का आरोप लगता रहता है ?
उ – इसमें सच्चाई नहीं है, इतना जरुर है कि जब किसी थाना क्षेत्र में लंबे समय से हो रहे अपराध की जानकारी थानाध्यक्ष होने से इनकार करे तो उसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए और ऐसा हुआ भी है ! मेहरबान सिंह पुरवा के पास में चल जुए अड्डे वाले प्रकरण में थानाध्यक्ष और चौकी इंचार्ज दोनों को सस्पेंड किया गया !
प्र – चेन स्नेचिंग जैसी घटनाओं से महिलाओ का घर से निकलना दूभर है ! पुलिस क्या कर रही है ?
उ – गिरोहों को चिन्हित किया जा रहा है ! सफलता भी हाथ लगी है , प्रभावी कार्यवाही की जायेगी !
प्र – अब यहाँ के सुपारी किलर बाहर जा कर वारदात कर रहे है ! कैसे अंकुश लगायेगे ?
उ – पहले भी कानपुर के अपराधी पैसा लेकर बाहर के प्रदेशो में अपराध करने जाते रहे है ! पुलिस सजग है और कड़ी कार्यवाही करती रही है ! बात करे शेहला मसूद हत्याकांड की तो उसको खोलने में यू.पी. एस.टी.एफ. की भूमिका की तारीफ़ तो मध्य प्रदेश प्रशासन ने भी की !
प्र – संगठित अपराध रोकने के लिए क्या कदम उठाने जा रहे है ?
उ – संगठित अपराध की कमर तोड़ने को अपराधियों को जेल भेजा जाएगा और अदालत में उनके खिलाफ मज़बूत और त्वरित पैरवी की जायेगी ! ये सुनिश्चित किया जाएगा कि वो सजा पाए और जेल में ही रहे ! हाल में हुये सईद नाटा और धुन्नर हत्या कांड में यही देखा गया कि जेल से निकल कर आये बदमाशो ने ही इन वारदातों को अंजाम दिया ! हम सभी पुलिस जन कानपुर वासियों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु संकल्पित है !

15 टिप्‍पणियां:

  1. एक अच्छा लेख ... जिसमे कानपुर के अपराधिक जगत की पूरी दास्ताँ आपने बयाँ कर दी.. इसके लिए आपको साधुवाद.. अब सोचने की बात यह है कि इन सामान्य परिस्थितियों को - जिसे आप जैसे पत्रकार तो छोड़िये जनसामान्य व्यक्ति भी जान रहा है - शहर का पुलिस प्रशासन क्यों नहीं समझ पा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि चूँकि कानपुर प्रदेश की आर्थिक राजधानी है और यहाँ तैनात होने वाला हर अधिकारी केवल अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए अपनी पोस्टिंग यहाँ चाहता हो? आखिर पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवालिया निसान क्यों लग रहे हैं? अगर शहर अपराधियों का आकर्षण का केंद्र है तो पुलिस अधिकारियो को भी उतना ही आकर्षित करता रहा है ये शहर...छोटे या बड़े अपराधों के प्रति कार्यवाही की बात छोड़िये यहाँ की पुलिस तो अपने सामान्य कर्तव्यों का भी निर्वहन नहीं करना चाहती..एक नागरिक के रूप में जन समुदाय की क्या अपेक्षाएं हो सकती हैं पुलिस प्रशासन से? सिर्फ यही न कि कानून व्यवस्था ऐसी हो कि उसे रोजमर्रा के कामकाज में व्यवधान न हो...लेकिन यहाँ स्थितियां क्या है? हर छोटा बड़ा अपराधी - और तो और सड़को पर अतिक्रमण करने वाले भी - पुलिस को अपनी मनमर्जी से चला रहे हैं. हाँ! अगर पुलिस वास्तविक रूप में गंभीर सोच रखती है तो सर्वप्रथम उसे जनता को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करके ये दिखाना होगा कि पुलिस वास्तव में नागरिकों की सुरक्षा के लिए है तभी शायद उस पर लगा ये बदनुमा दाग हट सकता है...!!!

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  2. आपकी बहुमूल्य और सारगर्भित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार राजकुमार भाई ..

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  3. उ०प्र० पुलिस प्रशासन सदैव राजनीति से प्रभावित हो कर कार्य करती रही है नतीजतन दुश्परिणाम सामने नजर आ रहे हैँ
    जब तक राजनितिज्ञों के चंगुल से प्रशासन आजाद होकर स्वछंद कार्यनीति नही अपनाता तबतक किसी अच्छे परिणाम की उम्मीद व्यर्थ है

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    1. किसी का अंकुश तो जरुरी है नवीन भाई , नहीं तो प्रशासन निरंकुश हो जाएगा !

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  4. Great lines bahut hi acche tarah se samjhaya hai aapne Kanpur City ko... kafi acche se etihas ki jankari rakhte hai aap...

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  5. Pura lekh dekhne k baad yahi pata chaltahai ki shayad ab apne Kanpur ko CRIME CITY ka name de de to kuch bhi atishayokti nahi honi chahiye.
    bahut hi acha aur sacchai se jude aise lekh bahut kam hi dekhe hai maine..aapka bahut bahut aabhar..sir

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  6. Bahut aaccha lekh hai...poora ka poora itihaas khol kar rakh diya..bahut bahut badhai

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  7. धन्यवाद !
    जय हिंदुत्व... जय संघ !!!
    अति सुन्दर लेख भाई जी ...

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  8. BAHUT HI ACHHA LEKH HAI ISHASHE KUCH PURANE JAGLARO KO JANANE KO MILA . AAJ KE SAMAY ME APRADH KARANE KE TARIKO ME PARIWARTAN AAYA HAI AAJ KE APRADH AADHUNIK ROOP LIYE HUYE HAI JINKO KEWAL APRADHI TATWA HI IZZAD KARTE HAI. KANPUR SOUTH ME ISH TIME APRADH KA STAR BAHUT HI BADH GAYA HAI .

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