शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

गणपति के रंग में रंगा कानपुर


प्रवीण शुक्ल 

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा १८८९ से महाराष्ट्र से शुरू हुआ गणेश महोत्सव का सिलसिला पूरे देश में राष्ट्रीय एकता के सन्देश के साथ फ़ैल चुका है ! कानपुर भी इस धारा से अलग नही रहा और १९२१ में सिद्दिविनायक गणेश मंदिर, सुतरखाना से गणपति उत्सव का प्रारंभ कानपुर की धरती से हो गया ! हर साल विस्तार लेते इस उत्सव ने महोत्सव का रूप ले लिया है उपलब्ध आंकडो के अनुसार इस वर्ष कानपुर में १२०० से ज्यादा स्थानों में गणपति स्थापित किये गए है ! इसके अलावा घरों में भी पूर्ण श्रद्धा और उत्साह के साथ गणपति रखे गए है ! पूरे शहर में गणपति का उमंग – रंग छाया हुआ है , आस्था और उल्लास से मन हिलोरे मार रहा है ! अनंत चतुर्दशी को विसर्जन तक सभी गणेश उत्सव पंडालो में अलग – अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है ! अगर ये कहा जाए कि गणपति उत्सव महाराष्ट्र के बाद पूरे भारत में कही सबसे वृहद स्वरुप में मनाया जाता है तो वो कानपुर में ही है तो गलत नहीं होगा !
फोटो - ज्ञान प्रकाश अवस्थी 
पूर्ण मराठी परिवेश में होने वाला महाराष्ट्र मंडल खलासी लाइन का आयोजन महाराष्ट्र की याद दिलाता है ! वर्षों पुराने आयोजनों में शिवाला चौक, लाठी मोहाल,  रामनारायण बाजार, नवाबगंज - आज़ाद नगर  व्यापार मंडल , महेश्वरी मोहाल में गणेश उत्सव के दौरान होने वाले कार्यक्रमों का लोग वर्ष पर्यंत इन्तजार करते है ! लाठी मोहाल राधे राधे बाल संघ के गणेश उत्सव से जुड़े अरुण तिवारी बताते है कि धार्मिक भावनाओ के साथ ही राष्ट्रीय भाव का प्रचार प्रसार करना ही उनके आयोजन की विशिष्टता है ! हरीश जैन कहते है गणपति उत्सव आयोजन का पूरे वर्ष उत्साह रहता है , पूर्ण श्रद्धा के साथ गणपति को लाकर , स्वागत में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक चेतना फैलाना उनका उद्देश्य है ! विभिन्न धार्मिक और सामाजिक आयोजनों से जुड़े ज्ञानेंद्र विश्नोई के अनुसार गणेश महोत्सव हमारी धार्मिक और सामाजिक चेतना दोनों को जगाने का अदभुत उत्सव है !

अनंत चतुर्दशी तक पूरा शहर गणपति के रंग में सराबोर रहेगा , प्रतिमा विसर्जन के बाद भी गणपति आने वाले वर्ष की प्रतीक्षा में शहर को रख जायेंगे ! 

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